ज्ञानार्जन और सत्य के मानदंड
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ नमस्ते पिछले दो ब्लॉग में आपने देखा की एक साधक अपने अनुभवों पर केवल व्यावहारिक रूप से विश्वास करता क्योंकि अनुभव प्राप्त करने के लिए उसे इन्द्रियों का सहारा लेना पड़ता है जो उसे कभी भी छल सकती हैं। साथ ही आपने यह भी जाना की साधक जीवन को सरल रखने का प्रयास करता है जिससे वह बंधनमुक्त रह कर सत्य की खोज में स्वतंत्रता से अपने मनुष्य जीवन का उपयोग कर सकें। सत्य तक पहुँचने के लिए सबसे पहले साधक को यह जानना होता है कि सत्य है क्या और इसका ज्ञान कैसे प्राप्त किया जा सकता है। आज के ब्लॉग में मैं अपने गुरु की कृपा से सरल और सीधे विधि से ज्ञान प्राप्त करने के साधन और सत्य के मानदंड पर प्रकाश डालने का प्रयास करूंगा जिससे नए साधक जो सत्य की खोज में हैं वो सही दिशा में आगे बढ़ सकें। यह लेख उन साधकों के लिए, जो अद्वैत की अवस्था तक पहुँचना चाहते है और अपने परम सत्य को जानना चाहते हैं, बहुत जरूरी है क्योंकि ये एक आधारस्तंभ रहेगा उनके भविष्य के प्रयासों के लिए। ज्ञान के साधन ज्ञान क्या है ? आपको जितने भी...