अनुभव - एक शाश्वत भ्रम
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ नमस्ते ! पिछले लेख में आपने स्वयं को जाना इसी ज्ञान को आत्मज्ञान कहते है। आपने जाना की आप न मन है, न शरीर और न ही कोई और अनुभव आप वह निर्गुण अपरिवर्तनशील तत्व हैं जो सभी अनुभवों के पटल पर नित्य उपस्थित रहता है। आज के लेख से हम अनुभव को समझने का प्रयास करेंगे। आपके स्वयं के परे जो भी अस्तित्व में है उसे अनुभव कहते है, अर्थात जो भी प्रतीत हो रहा है उसे अनुभव कहेंगे। आज के लेख में हम अनुभव का मूलभूत अध्ययन करेंगे। शुरू करने के लिए आप अपने आस पास के अनुभवों पर ध्यान दे और देखने का प्रयास करें की कितने प्रकार के अनुभव हैं। आपको कई प्रकार के अनुभव दिखेंगे जैसे आकाश, तारे, सूरज, बादल, पहार, नदी, मिट्टी, पेड़, सड़क, घर की दिवार, खाने के सामग्री, मेज़, आपका शरीर, शरीर में होने वाली संवेदना, भावना, विचार, इच्छाएं, स्मृति आदि होंगी। इन अनुभवों को आप निम्न तीन भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं। जगत - जगत के अनुभव में आप आकाश, तारे, सूरज, बादल, पहार, नदी, मिट्टी, पेड़, सड़क, घर की दिवार, खाने के स...