आत्मज्ञान - वो मैं ही हूँ !


  गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

नमस्ते

पिछले लेखों में हमने जाना की एक साधक क्यों अनुभवों को सत्य नहीं मानता है और क्यों वह अपने जीवन में सभी अनावश्यक बंधनों से दूर रहता है। हमने यह भी जाना की साधक के जीवन के सत्य के मानदंड बहुत ही उच्च और सरल होते हैं और यही मानदंड निरंतर साधकों का मार्गदर्शन करके उन्हें सत्य की खोज के लिए प्रेरित करता है। आज के लेख से हम सत्य को समझने का प्रयास करेंगे पहले आपको स्वयं का बोध कराया जाएगा इसे आत्मज्ञान कहते है , फिर आपके आस पास के अनुभवों को समझने का प्रयास किया जाएगा जिसे माया का ज्ञान कहते हैं और फिर आप में और माया में क्या संबंध है यह समझाया जायेगा इसे ब्रह्मज्ञान कहते हैं।

आत्मज्ञान

अगर आपसे पूछे जाये की आप कौन है तो शायद आपका उत्तर निम्न होगा :

  • नाम - परन्तु अगर आपका नाम बदल दिया जाये तो क्या आप बदल जायेंगे, नाम केवल शब्द है जो आप नहीं हैं। इसी तरह से आप नाम, संबंध, उपाधि नहीं हैं। 
  • शरीर - आप देखेंगे की, 99% मनुष्य खुद को शरीर समझते हैं, पर इस भ्रम को भी आप नष्ट कर सकते है। आप शरीर है या नहीं, ये जानने के लिए आपको केवल अपने शरीर से आने वाले अनुभवों का  विश्लेषण अपने अपरोक्ष अनुभव और तर्क की सहायता से करना होगा। याद कीजिए कि जब आप 5 या 6 साल के थे तो आपका शरीर कैसा था आज की तुलना में। आप आसानी से देख पाएंगे की बचपन का शरीर और आज के शरीर में कोई तादात्म्य नहीं है दोनों शरीर की ऊंचाई, रंग, रूप, वजन सब बदल गया है और दोनों शरीर 100% अलग है। और अब आप देख पाएंगे कि आप वह हैं जो उस बचपन के शरीर और आज के शरीर दोनों के साक्षी है अर्थात आप वह अपरिवर्तनशील तत्व है जो बदलते हुए शरीर का अनुभव करता है। इसी तरह से आप आसानी से तर्क की शक्ति से ये जान सकते हैं कि अगर आपके शरीर से हर वो अंग बदल दिया जाये जो आधुनिक विज्ञान की सहायता से बदला जा सकता है जैसे हृदय, फेफड़े, लिवर, आँखें आदि इन अंगों के बदलने के बाद भी आप यह आसानी से अनुमान लगा सकते हैं की आप नहीं बदलेंगे, यहाँ तक की लिंग परिवर्तन के बाद भी केवल शरीर का अनुभव थोड़ा भिन्न होगा परन्तु आप नहीं बदलेंगे। इस अपरोक्ष अनुभव और तर्क की सहायता से आप जान सकते है की आप शरीर नहीं है केवल उसके अनुभवकर्ता है।
  • मन - कुछ मनुष्य यह कहेंगे कि वो शरीर नहीं है परन्तु मानसिक अनुभव हैं जैसे बचपन और आज के शरीर की स्मृति या फिर अहम्। इसका सही उत्तर जानने के लिए आपको केवल अपने अपरोक्ष अनुभव और तर्क की सहायता से मानसिक अनुभवों का विश्लेषण करना होगा जैसे आपके मन में उत्पन्न होने वाले आपके बचपन की स्मृतियां हमेशा नहीं रहती जब ये स्मृतियाँ नहीं रहती तब भी आप रहते हैं। आप ये भी देख पाएंगे की बहुत से विचार आपके मनोशरीर यंत्र (मन और शरीर की रचना) में उत्पन्न होते हैं जिनके आवेग में आप अपने जीवन का सारा कर्म करते हैं  ये विचार थोड़े थोड़े समय में खत्म हो जाते हैं और नए विचार आ जाते है परन्तु आप वह अपरिवर्तनशील तत्व है जो विचारों और इन विचारों के आवेग से प्रेरित होते शरीर को कर्म को केवल देखते हैं। 
अपने अपरोक्ष अनुभव और तर्क से आप जान सकते हैं कि आप न शरीर हैं, नाही मन हैं, आप वह है जो बदलते हुए शरीर और मन की गतिविधियों के दृष्टा है। आप इस मनोशरीर यंत्र के हर एक गतिविधि के दृष्टा हैं। इसी तरह से 
  • जब यह मनोशरीर यंत्र किसी दुसरे मनोशरीर यंत्र से वार्तालाप करता है तो आप उस वार्तालाप के दृष्टा होते हैं।  
  • जब यह मनोशरीर यंत्र अपनी दिनचर्या का कोई भी कार्य करता है तो आप उन कार्यों के दृष्टा होते हैं।
  • जब यह मनोशरीर यंत्र कोई कल्पना करता है तो आप उस कल्पना के दृष्टा होते हैं।
  • जब यह मनोशरीर यंत्र दुख या सुख में होता है तो आप उस भवना के भी दृष्टा मात्र होते हैं।
  • जब यह मनोशरीर यंत्र कोई स्वप्न देखता है तो आप उस स्वप्न के भी दृष्टा होते हैं।
आपके सामने अनगिनत अनुभव प्रकाशित होते रहते हैं और आपका ध्यान कभी शारीरिक के अनुभवों पर होता है कभी मानसिक अनुभवों पर होता है और कभी जगत के अनुभवों पर होता है परन्तु आप वह अपरिवर्तनशील तत्व हैं जो पृष्ठभूमि में रहकर निरंतर घटने वाले अनुभवों को देखता रहता है। 

अब शायद आप यह जानना चाह रहे होंगे कि आप है कौन। यह अनुभवकर्ता जो सारे आने जाने वाले अनुभवों का दृष्टा है वह वास्तव में है कौन? इस प्रश्न का उत्तर पिछले ब्लॉगों में दिए गए 7 प्रश्नों के उत्तर से आप ढूंढ पाएंगे। अनुभवकर्ता के विश्लेषण से पहले कुछ आवश्यक बातों को जानना जरूरी है जैसे  
भाषा और परिभाषा - हमारा विश्लेषण जितना सूक्ष्म होगा उतना ही आपको अपनी भाषा को शुद्ध और सटीक रखने का प्रयास करना होगा क्योंकि भाषा शुद्ध और सटीक न हो तो समझाने वाले व्यक्ति का अर्थ और समझने वाले व्यक्ति का अर्थ अलग हो सकता है। इस लेख में अनुभव और अनुभवों के परे पराभौतिक और परामानसिक विषयों को शब्दों के रूप में समझाने का कठिन प्रयास किया जा रहा है। इसलिए अध्यात्म में आगे बढ़ने के लिए आपको अपनी भाषा शुद्ध और सटीक रखने का प्रयास करना होगा। 
अनुभवकर्ता - आप यह तो जान गए होंगे की अनुभवकर्ता वह है जो सभी अनुभवों का दृष्टा है। इसी अनुभवकर्ता को प्राचीन काल में अलग- अलग दर्शनों में अलग-अलग नामों से सम्बोधित किया गया है। जैसे पुरुष, साक्षी, दृष्टा, शिव, अनुभवकर्ता, आत्मन, ये सभी शब्द एक ही है।
तत्व - तत्त्व उसे कहते हैं जो मूल हो। जब विश्लेषण किये जाने वाले विषय से सारे अनावश्यक गुणों को हटा दिया जाये फिर जो भी बचेगा जिसे हटाया नहीं जा सकता उसे तत्व कहेंगे। जैसे मेज का मूल तत्व लकड़ी है, घरे का मूल तत्व मिट्टी है, सागर की लहरों का मूल तत्त्व पानी है।
अस्तित्व - अस्तित्व वो है जिसमें सभी कुछ है। जो भी है वह अस्तित्व है। अनुभवकर्ता और सभी अनुभव को हम अस्तित्व का नाम दे रहे हैं।

अनुभवकर्ता का विश्लेषण सात प्रश्नों द्वारा क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ, कौन, कितना

अनुभवकर्ता क्या है ?
इस प्रश्न का उत्तर विषय को परिभाषित करता है। किसी भी विषय को परिभाषित करने के लिए आपको  अपने अपरोक्ष अनुभव और तर्क की सहायता से उस विषय का ज्ञान लेने का प्रयास करना होगा। 
आप जानते है की आप शरीर और मन नहीं है अपितु इनके दृष्टा है। अगर आप स्वयं अर्थात दृष्टा का अनुभव लेने का प्रयास करें तो आपको कोई भी अनुभव नहीं होगा क्योंकि आप वह है जिस तक सारे अनुभव पहुँचते हैं परन्तु आपके स्वयं का कोई भी अनुभव नहीं है। इस पर मनन कीजिए। आपके मनन के बाद आपको यह ज्ञात होगा की आप 100% हैं, परन्तु आपको स्वयं का अनुभव नहीं हो रहा इसलिए आपके स्वयं का ज्ञान भी संभव नहीं है। अनुभवकर्ता किसी भी प्रकार का अनुभव नहीं है।
अनुभवकर्ता अज्ञेय है आपको केवल इतना ही ज्ञात होगा की सारे अनुभव अनुभवकर्ता को होते है और अनुभवकर्ता हर अनुभव के पृष्ठभूमि में रहकर अज्ञात रहता है और स्वयं प्रकाशित रहता है। 

अनुभवकर्ता क्यों है ?
इस प्रश्न का उत्तर विषय के होने का कारण का बोध कराता है।
अपने अपरोक्ष अनुभव से आप जानते है की कारण के बाद ही उसका प्रभाव दिखता है अर्थात कारण और प्रभाव के बीच में समय का अंतराल होगा। कारण और प्रभाव एक साथ प्रकट नहीं हो सकते हैं पहले कारण आएगा और उसके बाद ही उसका प्रभाव आएगा। अगर अनुभवकर्ता का कोई कारण हुआ तो अनुभवकर्ता उस कारण का प्रभाव होगा और अनुभवकर्ता उस कारण के बाद ही प्रकट होगा। अब मनन कीजिए की कौन देख पायेगा उस कारण को, जो अनुभवकर्ता के जन्म से पहले से ही उपस्थिति हो? अनुभवकर्ता स्वयं ही। इसलिए यहाँ पर इस कारण का अनुभवकर्ता पहले से ही मौजूद होगा और इसी तरह से हर कारण का अनुभवकर्ता पहले से ही मौजूद होता है।
अनुभवकर्ता सभी कारणों का दृष्टा है और वह स्वयं अकारण है। 

अनुभवकर्ता कब से है ?
इस प्रश्न का उत्तर विषय के उत्पत्ति और अंत का समय बताता है। 
मान लीजिये एक प्राचीन समय था जब अनुभवकर्ता नहीं था और कुछ समय के बाद अनुभवकर्ता का उत्पत्ति हुआ। तो फिर अनुभवकर्ता के जन्म से पहले किसको अनुभव हो रहा होगा ? इस पर मनन कीजिए। मनन के बाद आप देख पाएंगे की अनुभवकर्ता के जन्म से पहले भी एक अनुभवकर्ता होगा जिसको अनुभवकर्ता के अभाव का अनुभव हो रहा होगा और अनुभवकर्ता के जन्म से पहले का ही अनुभवकर्ता वास्तविक अनुभवकर्ता होगा । इसी तरह से मान लीजिए एक समय के बाद अनुभवकर्ता नहीं रहेगा तो फिर किसको अनुभवकर्ता के अभाव का अनुभव होगा ? ये दोनों अनुभव, अनुभवकर्ता के जन्म के पहले और अंत का अनुभव भी अनुभवकर्ता को ही होगा और जिसका भी जन्म या अंत होगा वह केवल अनुभव मात्र होगा। 
अनुभवकर्ता समय की धारणा के परे है और अनुभवकर्ता का न जन्म होता है और न अंत, अनुभवकर्ता शाश्वत है  । 

अनुभवकर्ता कैसे है ?
इस प्रश्न का उत्तर विषय के उत्पत्ति की प्रक्रिया बताता है। 
मान लीजिये कोई ऐसी प्रक्रिया है जिससे अनुभवकर्ता का जन्म होता है तो फिर इस प्रक्रिया को होते हुए कौन देख रहा होगा ? ये पूरी प्रक्रिया भी एक अनुभव होगी और इस पूरी प्रक्रिया को देखने वाला दृष्टा पहले से मौजूद होगा।
अनुभवकर्ता जन्म की धरना से भी परे है। अनुभवकर्ता के होने का कोई कारण नहीं है वह स्वयंभू है।

अनुभवकर्ता कहाँ है ? 
इस प्रश्न का उत्तर विषय के स्थान का बोध कराता है। 
यदि आप अनुभवकर्ता के उपस्थित स्थान को ढूढ़ने का प्रयास करें तो आपको कोई भी स्थान नहीं मिलेगा। मान लीजिये आप किसी फलाने स्थान को चिन्हित करते है की वहाँ अनुभवकर्ता है, तो फिर इस फलाने स्थान और वहां उपस्थित अनुभवकर्ता का अनुभव किसको होगा? जिसे भी इस फलाने स्थान और वहां उपस्थित अनुभवकर्ता का अनुभव होगा वही वास्तविक अनुभवकर्ता हो जायेगा। इस तरह से अनुभवकर्ता कभी भी स्थान में नहीं होगा क्योंकि स्थान खुद ही अनुभव है और स्थान का अनुभव हमेशा अनुभवकर्ता को ही होगा।
अनुभवकर्ता स्थानों के परे है।

अनुभवकर्ता कौन है ?  
इस प्रश्न का उत्तर किसी व्यक्ति की ओर इशारा करता है। आपने पहले ही देखा था मनोशरीर यंत्र जो व्यक्ति के रूप में होता है वह केवल अनुभव मात्र है और व्यक्ति के रूप में इस मनोशरीर यंत्र का अनुभव भी अनुभवकर्ता को ही होता है।
अनुभवकर्ता कोई व्यक्ति नहीं है अपितु व्यक्ति का अनुभव अनुभवकर्ता को होता है।

अनुभवकर्ता कितने है ? 
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आपको गणनीय वस्तु का विश्लेषण करना होगा। 
अगर किसी वस्तु की गिनती संभव हो तो उस इकाई की सीमाएं होनी चाहिए जिससे उस वस्तु की शुरुआत और अंत का पता चल सके। आपको किसी भी वस्तु की शुरुआत और अंत का ज्ञान तभी होगा जब वह वस्तु का अनुभव संभव हो। इसलिए अगर अनुभवकर्ता एक से ज्यादा हुआ तो उसकी सीमा निर्धारित होगी और उसकी गिनती संभव होगी परन्तु अनुभवकर्ता कोई अनुभव नहीं है
अनुभवकर्ता एक से ज्यादा नहीं हो सकता है।
  • क्या इसका मतलब अनुभवकर्ता एक है ?
    • जैसे आपने देखा गणना के लिए सीमाएं होनी चाहिए और सीमाओं का ज्ञान तभी संभव होगा जब वह वस्तु अनुभव हो। इसलिए आप यह भी नहीं कह सकते की अनुभवकर्ता एक है। अपने अपरोक्ष अनुभव से आप केवल यह जान सकते हैं की अनुभवकर्ता है और वह गणना के परे है। 
    • परन्तु बुद्धि को शांत करने के लिए हम कहते हैं की अनुभवकर्ता एक है।
ऊपर किये गए सात प्रश्नों के विश्लेषण से आपने जाना की अनुभवकर्ता स्वयं प्रकाशित है, अकारण है, शाश्वत है, स्वयंभू है, सर्वव्यापक है, अनादि है, अनंत है,  और यह अनुभवकर्ता आप स्वयं है। यह ज्ञान शायद आपको पहली बार मिला हो इसलिए ऊपर दिए सभी प्रश्नों पर तब तक मनन कीजिए जब तक आप इसका सत्यापन न कर ले। अगर आपको कोई भी सवाल हो तो कमेंट के द्वारा आप मुझसे सवाल पूछ सकते हैं।

इस लेख में आपको स्वयं के तत्व का बोध कराने का प्रयास किया गया है। आपका वास्तविक स्वरूप हमेशा आपके सामने ही होता है फिर भी सभी मनुष्य इस ज्ञान से अनभिज्ञ रहते है। स्वयं के मूल तत्व के ज्ञान को आत्मज्ञान कहते है और एक साधक के लिए अपने मूल तत्व को जानना और अनुभवकर्ता के भाव में रहना ही सबसे बड़ी साधना है और इसी साधना को साक्षीभाव की साधना भी कहते हैं। इस साधना में केवल आपको यह प्रयास करना होगा की आप यह याद रखें की आप कौन हैं। आपको हर समय यह याद रखने का प्रयास करना होगा की आप सभी अनुभवों के दृष्टा हैं। इस साधना से आपकी आध्यात्मिक प्रगति तेज हो जाएगी और आप विकाश क्रम में तेजी से आगे बढ़ पाएंगे। अपने गुरु की आज्ञा और आशीर्वाद लेकर यह साधना आप कभी भी शुरू कर सकते है। अगर आपके पास अभी गुरु नहीं हैं तो भी आप यह साधना शुरू कर सकते हैं परन्तु इसका फल बहुत ही कम तीव्रता से दिखेगा। आशा करता हूँ की आपके जीवन में गुरु का आगमन जल्दी हो।
मैं एक नए लेख के माध्यम से फिर मिलूंगा। 


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