अंधकूप पर साधक की अंतर्दृष्टि

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ नमस्ते, अगर आपने पहला ब्लॉग पढ़ा है और आपका जीवन को देखने का दृष्टिकोण थोड़ा भी बदला है तो शायद आप जीवन के बारे में और भी जानना चाहते है। आप शायद अध्यात्म को और भी गहराई से जानना चाहते है पर आप साधकों के विभिन्न रूपों को देख भ्रमित हो जाते हैं क्योंकि आपने देखा होगा कई साधक योग में लीन होते है तो कई देवी देवताओं की आराधना करते है वहीँ कई हिमालय में एकांत में साधु बन कर रहते हैं तो कई ध्यान में लीन है और कई समाज की सेवा कर रहे हैं । साधकों के इतने प्रकार को देख के भ्रमित होना स्वाभाविक है। आप शायद सामाजिक प्रश्नों से भी घिरे होंगे जैसे समाज उचित आदर्शों का पालन नहीं करता जिससे अधिक जीवों का भला हो सके और सभी मनुष्य पशुवृत्ति में लीन दिखाई पड़ते हैं और खुद को ही सर्वोपरि मानते हैं। आप शायद खुद के कर्मों को देख कर भी चकित होते होंगे की कैसे बाहरी कारण आपके कर्मों को आसानी से प्रभावित कर देती है।शुरुआती दिनो में सभी साधकों का इन प्रश्नों से सामना होता है। इन प्रश्नों के साथ-साथ आ...