ब्रह्मज्ञान : अद्वैत : परम सत्य
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
आपने पिछले कुछ लेखों से समझा कि आप कौन है, आप अर्थात अनुभवकर्ता वह नित्य, निरंतर, सर्वव्यापी चेतना है जिस तक सारे अनुभव पहुँचते हैं। आपने यह भी जाना की आपके अलावा जिसका भी ज्ञान आपको होता है वह अनुभव है यह अनुभव भी नित्य, निरंतर और सर्वव्यापी है। आपने अब तक यह भी जान लिया होगा की अनुभवकर्ता और अनुभव हमेशा साथ ही होते हैं आपको कभी भी ऐसा अनुभव नहीं होगा जहां आप न हो या फिर आप तो हैं परन्तु अनुभव नहीं है।अब आपको यह प्रश्न आना भी स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों है की अनुभव और अनुभवकर्ता साथ में ही होते हैं। आज के लेख में हम इसी विषय पर बात करेंगे की अनुभव और अनुभवकर्ता में क्या सम्बन्ध है। इस लेख को पढ़ने से पहले आवश्यक है की आपको आत्मज्ञान हो गया हो और आप अनुभव और अनुभवकर्ता में भेद करने में सक्षम हों।
सबसे पहले आप स्वयं के ज्ञान पर ध्यान लाएं और अपने स्वयं पर ध्यान बनाए रखें अब आप यह देखे की आप, जो सभी अनुभवों को अनुभव करते हैं और जिसके स्वयं का अनुभव नहीं हो सकता, जो स्थान और समय की धारणा के परे है वह वास्तव में कहाँ है।
आप यह पाएंगे कि आप अभी है, यहीं हैं, इसी पल में हैं। इस पर मनन करें जब तक यह सत्यापित न हो।
अब आप अनुभवों को देखने का प्रयास करें पिछले लेख में आपने जाना की जगत, शरीर और मन के सारे अनुभव भिन्न नहीं हैं यह तीनो मानसिक अनुभव ही हैं। बुद्धि का प्रयोग करके समझने का प्रयास करें की आप जिस स्क्रीन पर यह पढ़ रहे हैं वह स्क्रीन कहाँ है?
आपको ऐसा लग रहा होगा की स्क्रीन आपके आखों के सामने कुछ दूर पर है इसलिए यह स्क्रीन कहीं सामने है आपके और आप अर्थात अनुभवकर्ता कहीं दूसरी जगह पर हैं। अगर आप स्क्रीन के प्रकट होने के क्रिया का विश्लेषण करें तो आप जान जाएंगे की यह जो स्क्रीन है वह केवल इन्द्रियजनित अनुभूति है जो आपके मन में है।
शायद आपको फ़ोन की स्क्रीन दूर होने का भ्रम इसलिए हो रहा है क्योंकि आपके फ़ोन की स्क्रीन आपके हाथ में है और आप यह मानते हैं की शरीर और फ़ोन की स्क्रीन भिन्न है।
अब एक दृष्टि अपने हाथों पर डालिए बुद्धि का प्रयोग करके सोचिये की इन हाथों का अनुभव आपको कहाँ हो रहा है। आपके हाथ भी इन्द्रियजनित अनुभूति है यह हाथ भी वहीं मन में प्रकट है जहाँ स्क्रीन है और आपको हाथ की उँगलियों में फ़ोन की जो संवेदना हो रही है वह भी मन में ही है। इसी तरह से अभी आपको जो विचार आ रहे हैं वो भी उसी मन में हैं। इस पर भी मनन करें जब तक यह सत्यापित न हो।
अब आप देख सकते हैं की फ़ोन की स्क्रीन, आपके हाथ, हाथों की संवेदना और विचार एक ही स्थान पर है।
अब आप स्वयं से दूर रखी किसी वस्तु पर एक दृष्टि डालिये। इस वस्तु और आपके बीच में जो स्थान प्रतीत हो रहा है वह स्थान भी केवल एक मानसिक अनुभव है।
अब शायद आप यह सोच रहे हो की ये मानसिक अनुभव आपके शरीर के अंदर कहीं है पर आप इस मान्यता का आसानी से खंडन कर सकते हैं कि अगर आप अपने शरीर का एक्सरे करें या किसी के शरीर को काटा जाए तो अंदर कोई विचार या मन जैसा कुछ भी नहीं दिखेगा।
अब आप समझ सकते हैं की सारे अनुभव केवल मानसिक अनुभव है जो अभी है और यहीं है।
आपने ऊपर किये गए विश्लेषण से जाना की सारे अनुभव और अनुभवकर्ता दोनों अभी उपस्थित है और यहीं है इनमे स्थान का कोई भेद नहीं है इन दोनों में कोई दूरी नहीं है। इसलिए अनुभवकर्ता और अनुभव में कोई भेद नहीं है दोनों एक ही हैं यह दोनों ब्रह्म के दो रूप है जो आप ही हैं आप स्वयं अनुभवकर्ता है और आप ही अनुभव भी हैं। आप स्वयं का ही अनुभव कर रहे हैं। अनुभवकर्ता और अनुभव में एकता का संबंध है। केवल चित्त के विभाजन की वृत्ति के वजह से दोनों परस्पर अनन्य दीखते हैं परन्तु एक ही हैं और यही ब्रह्मज्ञान है।
यह लेख किसी भी नए साधक को तभी समझ में आएगा जब उसे आत्मज्ञान हो गया हो। आशा करता हूँ की आप अपने आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढ़ते रहें और स्वयं के वास्तविक स्वरुप में स्थापित हो सके।
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