ब्रह्मज्ञान : अद्वैत : परम सत्य
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ आपने पिछले कुछ लेखों से समझा कि आप कौन है, आप अर्थात अनुभवकर्ता वह नित्य, निरंतर, सर्वव्यापी चेतना है जिस तक सारे अनुभव पहुँचते हैं। आपने यह भी जाना की आपके अलावा जिसका भी ज्ञान आपको होता है वह अनुभव है यह अनुभव भी नित्य, निरंतर और सर्वव्यापी है। आपने अब तक यह भी जान लिया होगा की अनुभवकर्ता और अनुभव हमेशा साथ ही होते हैं आपको कभी भी ऐसा अनुभव नहीं होगा जहां आप न हो या फिर आप तो हैं परन्तु अनुभव नहीं है। अब आपको यह प्रश्न आना भी स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों है की अनुभव और अनुभवकर्ता साथ में ही होते हैं। आज के लेख में हम इसी विषय पर बात करेंगे की अनुभव और अनुभवकर्ता में क्या सम्बन्ध है। इस लेख को पढ़ने से पहले आवश्यक है की आपको आत्मज्ञान हो गया हो और आप अनुभव और अनुभवकर्ता में भेद करने में सक्षम हों। सबसे पहले आप स्वयं के ज्ञान पर ध्यान लाएं और अपने स्वयं पर ध्यान बनाए रखें अब आप यह देखे की आप, जो सभी अनुभवों को अनुभव करते हैं और जिसके स्वयं का अनुभव नहीं हो सकता, जो स्थान और समय की ध...