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ब्रह्मज्ञान : अद्वैत : परम सत्य

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  गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ आपने पिछले कुछ लेखों से समझा कि आप कौन है, आप अर्थात अनुभवकर्ता वह नित्य, निरंतर, सर्वव्यापी चेतना है जिस तक सारे अनुभव पहुँचते हैं। आपने यह भी जाना की आपके अलावा जिसका भी ज्ञान आपको होता है वह अनुभव है यह अनुभव भी नित्य, निरंतर और सर्वव्यापी है। आपने अब तक यह भी जान लिया होगा की अनुभवकर्ता और अनुभव हमेशा साथ ही होते हैं आपको कभी भी ऐसा अनुभव नहीं होगा जहां आप न हो या फिर आप तो हैं परन्तु अनुभव नहीं है। अब आपको यह प्रश्न आना भी स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों है की अनुभव और अनुभवकर्ता साथ में ही होते हैं। आज के लेख में हम इसी विषय पर बात करेंगे की अनुभव और अनुभवकर्ता में क्या सम्बन्ध है। इस लेख को पढ़ने से पहले आवश्यक है की आपको आत्मज्ञान हो गया हो और आप अनुभव और अनुभवकर्ता में भेद करने में सक्षम हों।  सबसे पहले आप स्वयं के ज्ञान पर ध्यान लाएं और अपने स्वयं पर ध्यान बनाए रखें अब आप यह देखे की आप, जो सभी अनुभवों को अनुभव करते हैं और जिसके स्वयं का अनुभव नहीं हो सकता, जो स्थान और समय की ध...

अनुभव - एक शाश्वत भ्रम

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  गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ नमस्ते ! पिछले लेख में आपने स्वयं को जाना इसी ज्ञान को आत्मज्ञान कहते है। आपने जाना की आप न मन है, न शरीर और न ही कोई और अनुभव आप वह निर्गुण अपरिवर्तनशील तत्व हैं जो सभी अनुभवों के पटल पर नित्य उपस्थित रहता है। आज के लेख से हम अनुभव को समझने का प्रयास करेंगे। आपके स्वयं के परे जो भी अस्तित्व में है उसे अनुभव कहते है, अर्थात जो भी प्रतीत हो रहा है उसे अनुभव कहेंगे। आज के लेख में हम अनुभव का मूलभूत अध्ययन करेंगे।  शुरू करने के लिए आप अपने आस पास के अनुभवों पर ध्यान दे और देखने का प्रयास करें की कितने प्रकार के अनुभव हैं। आपको कई प्रकार के अनुभव दिखेंगे जैसे आकाश, तारे, सूरज, बादल, पहार, नदी, मिट्टी, पेड़, सड़क, घर की दिवार, खाने के सामग्री, मेज़, आपका शरीर, शरीर में होने वाली संवेदना, भावना, विचार, इच्छाएं, स्मृति आदि होंगी। इन अनुभवों को आप निम्न तीन भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं। जगत - जगत के अनुभव में आप आकाश, तारे, सूरज, बादल, पहार, नदी, मिट्टी, पेड़, सड़क, घर की दिवार, खाने के स...

आत्मज्ञान - वो मैं ही हूँ !

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    गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ नमस्ते पिछले लेखों में हमने जाना की एक साधक क्यों अनुभवों को सत्य नहीं मानता है और क्यों वह अपने जीवन में सभी अनावश्यक बंधनों से दूर रहता है। हमने यह भी जाना की साधक के जीवन के सत्य के मानदंड बहुत ही उच्च और सरल होते हैं और यही मानदंड निरंतर साधकों का मार्गदर्शन करके उन्हें सत्य की खोज के लिए प्रेरित करता है। आज के लेख से हम सत्य को समझने का प्रयास करेंगे पहले आपको स्वयं का बोध कराया जाएगा इसे आत्मज्ञान कहते है , फिर आपके आस पास के अनुभवों को समझने का प्रयास किया जाएगा जिसे माया का ज्ञान कहते हैं और फिर आप में और माया में क्या संबंध है यह समझाया जायेगा इसे ब्रह्मज्ञान कहते हैं। आत्मज्ञान अगर आपसे पूछे जाये की आप कौन है तो शायद आपका उत्तर निम्न होगा : नाम - परन्तु अगर आपका नाम बदल दिया जाये तो क्या आप बदल जायेंगे, नाम केवल शब्द है जो आप नहीं हैं। इसी तरह से आप नाम, संबंध, उपाधि नहीं हैं।  शरीर - आप देखेंगे की, 99% मनुष्य खुद को शरीर समझते हैं, पर इस भ्रम को भी आप ...

ज्ञानार्जन और सत्य के मानदंड

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  गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ नमस्ते पिछले दो ब्लॉग में आपने देखा की एक साधक अपने अनुभवों पर केवल व्यावहारिक रूप से विश्वास करता क्योंकि अनुभव प्राप्त करने के लिए उसे इन्द्रियों का सहारा लेना पड़ता है जो उसे कभी भी छल सकती हैं। साथ ही आपने यह भी जाना की साधक जीवन को सरल रखने का प्रयास करता है जिससे वह बंधनमुक्त रह कर सत्य की खोज में स्वतंत्रता से अपने मनुष्य जीवन का उपयोग कर सकें। सत्य तक पहुँचने के लिए सबसे पहले साधक को यह जानना होता है कि सत्य है क्या और इसका ज्ञान कैसे प्राप्त किया जा सकता है। आज के ब्लॉग में मैं अपने गुरु की कृपा से सरल और सीधे विधि से ज्ञान प्राप्त करने के साधन और सत्य के मानदंड पर प्रकाश डालने का प्रयास करूंगा जिससे नए साधक जो सत्य की खोज में हैं वो सही दिशा में आगे बढ़ सकें। यह लेख उन साधकों के लिए, जो अद्वैत की अवस्था तक पहुँचना चाहते है और अपने परम सत्य को जानना चाहते हैं, बहुत जरूरी है क्योंकि ये एक आधारस्तंभ रहेगा उनके भविष्य के प्रयासों के लिए। ज्ञान के साधन ज्ञान क्या है ? आपको जितने भी...